मुंबई/ रमाशंकर पाण्डेय कॉटन यार्न की मांग थोड़ी बढ़ी है। कपड़ों के उत्पादन में सुधार होने से कॉटन यार्न तथा सिंथेटिक यार्न सहित पीवी एवं पीसी जैसे यार्न की मांग में आंशिक सुधार देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि कॉटन यार्न के भाव में स्थिरता रही तो मांग भी बढ़ सकती है और कॉटन यार्न का उत्पादन भी बढ़ सकता है। लेकिन सिंथेटिक और कॉटन यार्न दोनों के भाव बढऩे के आसार नजर आने लगे है। रूई के भाव बढऩे शुरू हो गए है और यह 57-58 हजार को पार कर 62 हजार रू को छू रही है। तो कू्रड तेल का उत्पादन घट जाने के बाद पेट्रो प्रोडक्ट की लागत में फेरबदल होने से टेक्सच्राइज्ड यार्न की विभिन्न वेराइटी की लागत पर सीधा असर होगा और भाव बढ़ सकते है। एक समय था जब साउथ से उत्तर तक स्पिनिंग मिलों ने कॉटन यार्न का उत्पादन करना या तो बंद कर दिया था अथवा अपनी स्थापित क्षमता से कम उत्पादन कर रही थी। तब मिलों की हालत बहुत अच्छी नहीं थी और यार्न की मांग भी कमजोर थी। साथ ही उस दौरान निर्यात में मीलों को कुछ हासिल नहीं हो रहा था। इसका कारण कि रूई का भाव इतना अधिक बढ़ा था कि उस भाव पर यार्न का उत्पादन करना और उसे बाजार में बेंचने में मीलों को बड़ी कठिनाई हो रही थी। इसलिए मीलों ने यार्न का उत्पादन तकरीबन 60 प्रतिशत तक घटाया और साउथ में कुछ समय तक उत्पादन रोक ही दिया था, अब मिलों की स्थिति सुधरने पर यार्न का उत्पादन बढ़ रहा है। साउथ की ओर अभी भी कुछ मीलों में यार्न का उत्पादन पूर्ववत् नहीं हो सका है। तथापि ऐसी रिपोर्ट है कि अधिकतर मीलों में यार्न का उत्पादन करीब 80 प्रतिशत क्षमता के साथ हो रहा है। यद्यपि निर्यात मांग को लेकर अभी भी मीलों में कुछ संशय एवं दुविधा है। वहीं स्थानीय मांग सुधरने से मिलों में यार्न का उत्पादन बढऩे लगा है। मीलें अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए रूई की खरीददारी कर रही है, परंतु बाजार में यार्न के भाव स्थिर लग रहे है और इसमें बहुत मामूली उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, इसलिए मीलें अधिक मंहगी रूई खरीदने से अभी बचेंगी, ताकि बाजारों में यार्न की कीमत ज्यादा नहीं बढ़े। लेकिन यार्न की मांग बढ़े, ताकि मिलों को यार्न के उत्पादन में कटौती नहीं करनी पड़े।
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