कॉटन यार्न के टूटने तथा सूती ग्रे में पांच से आठ प्रतिशत भाव घटने के बाद फि निश कपड़ों में आगे कारोबार बढऩे की संभावना
मुंबई/ दीपावली की छुट्टी के बाद सोमवार 31 अक्टूबर से खुले कपड़ा बाजारों में कामकाज नियमित होने लगा है। मुहूर्त सौदे अब बहुत कम होते हैं, इसलिए इसे लेकर पहले जैसा बाजार में अब कौतूहल नहीं होने के साथ किसी टे्रंड का कोई रुझान देखने को नहीं मिलता है। लेकिन कॉटन यार्न के टूटते रहने, ग्राहकी कमजोर रहने, उत्पादन इत्यादि में कटौती जैसे कई कारणों से व्यापारी बाजार पर बारीक नजर बनाए हुए है। रुई की पैदावार अधिक होने तथा कॉटन यार्न के भाव लगातार घटने से पिछले एक महिने में ग्रे सूती कपड़ों के भाव में पाचं से आठ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन इस अवधि के दौरान प्रोसेस्ड कपड़ों के भाव में बहुत अधिक गिरावट नहीं आई है।
जानकारों का कहना है कि घटते बाजार में प्रोसेस्ड कपड़ों के भाव कम घटने का कारण यह है कि पुराने किए सौदों में कोई अड़चन नहीं आए। यदि भाव में भारी गिरावट आती है, तो जो सौदे पहले हुए हैं, उनकी डिलीवरी पर आंच आ सकती है, इसलिए मिलें अथवा सप्लायर प्रोसेस्ड कपड़ों के भाव सीधे नहीं घटाते हैं, बल्कि बाजार के अनुरूप समयोजन करते हैं। संभावना है कि एकाध सप्ताह तक कपड़ा बाजारों में कारोबार कम हो सकता है, लेकिन दीपावली से पूर्व रिटेल बाजारों में हुए जबरदस्त कारोबार के बाद आगे की सर्दी एवं वैवाहिक सीजन में अच्छे कारोबार होने की संभावना से कपड़ा उद्यमियों में उत्साह है कि नवम्बर महिने से बाजारों में कारोबार अच्छा चलेगा। कपड़ा बाजारों के साथ कपड़ों का उत्पादन करने वाली इकाइयां तथा पावरलूम जो दीपावली को ध्यान में रखते हुए बंद हो गए थे, ये सभी लाभपंचमी से फि र से चालू हो गए हैं। गारमेण्ट इकाइयों के फि र से शुरू हो जाने से कपड़ों की मांग बढऩे की संभावना है क्योंकि दीपावली से पूर्व अंतिम सप्ताह में रिटेल स्टोरों, विशेषकर मॉल एवं बड़े फैशन स्टोरों में कपड़ों की खरीदी में बहुत ही अच्छी ग्राहकी रही थी। पुराने स्टॉक भी नहीं रहे। आगे शादियों की सीजन है, इसमें तमाम किस्म के कपड़ों सहित फैंसी कपड़ों और एथनिकवीयर की अधिक डिमांड को देखते हुए गारमेण्ट उत्पादकों ने व्यापक स्तर पर इसकी तैयारी की है। शेषांश पृष्ठ ६ पर...
च्द्मइन सभी धारणाओं के बल पर कपड़ों के लिए अच्छा समय आ गया है। हाल कच्चे माल के भाव में कोई स्थिरता नहीं है। ऐसी स्थिति में कपड़ों का उत्पादन करती इकाइयां और प्रोसेस करते प्रोसेस हाउस सभी दो चार हो रहे हैं। इतना ही नहीं, आर्थिक संकट के कारण भी बाजार धीमा पड़ा है।
जब बाजारों में कामकाज कम हो और ग्रे से लेकर फिनिश कपड़ा हो अथवा कॉटन यार्न या कपास के भाव घटते रहे हों, तो व्यापारियों का कारोबार से अधिक बाजारों के टें्रड पर ध्यान होता है। बाजार में उहापोह की स्थिति रहने पर हर कोई सुरक्षित ढंग से कारोबार करना चाहता है, इसलिए व्यापारियों की वरीयता प्लेन और चेक्स जैसी डिजाइनों की होती है, कारण कि इस तरह के कपड़ों में कारोबार कायमी रहता है और थोड़े उतार-चढ़ाव के साथ होता रहता है। कपड़ों के रिटेल कारोबार में रौनक लौटती है, तो स्थानीय बाजारों में कपड़ों में कारोबार सुधरेगा, परंतु निर्यात कारोबार को लेकर चिंताएं जस की तस है। उपलब्ध अवसरों के बावजूद निर्यात के मंदा रहने का संकेत मिल रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्व बहुत लम्बा खिंच चुका है, बल्कि कहा जा रहा है कि यह और भयानक मोड़ पर आ गया है। इसके साथ ही अमेरिका एवं यूरोप में बढ़ती महंगाई नये रिकॉर्ड बना रहे हैं। मंदी की आशंका बढ़ती ही जा रही है। पहले से मिले ऑर्डर में भी बिलंब होना शुरू हो गया है तथा नये निर्यात ऑर्डर कम आ रहे हैं। गनीमत है कि पुराने ऑर्डर अभी कैंसल नहीं हुए हैं। रूपए के बनिस्पत डॉलर के महंगे हो जाने से निर्यातकों पर आंच कम आ रही है। भारत अब कॉटन शर्टिंग और विविध वेराइटी के सूटिंग के साथ शर्टिंग इत्यादि का उत्पादन करने वाला देश नहीं है। भारत में अब इंटरनेशनल मार्केट की जरूरतों को पूरा करने के लिए गुणवत्तापरक कपड़े, गारमेण्ट, मेडअप्स, होम टेक्सटाइल, टेक्निकल टेक्सटाइल इत्यादि का उत्पादन कर उसे वैश्विक बाजारों में निर्यात किया रहा है।टेक्निकल टेक्सटाइल एक उदीयमान उद्योग है। आज के दौर में भारत के कुल टेक्सटाइल एवं एपरल मार्केट में टेक्निकल टेक्सटाइल का हिस्सा करीब 13 प्रतिशत आंका जा रहा है, वहीं भारत के काटन उत्पादों के टे्रडीशनल मार्केट यूएई, ईयू और जीसीसी है,इन देशों के साथ मुक्त व्यापार करार किए जाने से भारत से कपड़ों के निर्यात को अधिक बल मिल सकता है। रुई के भाव 40 प्रतिशत तक बढऩे से सूती कपड़ों में वृद्धि अपेक्षा से अधिक हुई, तो प्रोसेसिंग चार्ज 10 प्रतिशत तक बढ़े। इन कारणों से कपड़ों की ग्राहकी पर विपरीत असर पड़ा, कपड़ों की मांग बढऩे के बदले धीमी पड़ी। विंटर के प्रोग्राम पूरे हो चुके हैं। दिसम्बर अंत तक सूती कपड़ों की मांग शुरू होने की संभावना है। कॉटन कपड़ों की तुलना में सिंथेटिक कपड़ों के भाव कम घटे हैं। यद्यपि सिंथेटिक यार्न के कुछ डेनियर के भाव नीचे उतरे हैं, तथापि सिंथेटिक कपड़ों के भाव में उस अनुपात से गिरावट नहीं हुई है। मौसम सर्द होना शुरू हो गया है, इसलिए गर्म कपड़ों की मांग नवम्बर में अधिक रहने की संभावना से इस तरह के कपड़ों की डिमांड बहुत जल्द शुरू हो सकती है।
बाजारों में कमजोर कामकाज रहने का एक प्रमुख कारण इनका अधिक महंगा होना भी माना जा रहा है। क्योंकि पिछले पांच से छह महिने में सूती और निटेड कपड़ों के भाव 35 से 40 प्रतिशत तक बढ़े है। डेनिम में 40 से 50 प्रतिशत की तेजी दिखाई दी है। इतना ही नहीं, प्रोसेसिंग चार्ज और पेकेजिंग इत्यादि के भाव बढऩे से फि निश कपड़ों की लागत में भारी वृद्धि हुई है। आयातित कपड़ों की मांग कम है और इनका आयात भी घटा है। डॉलर की मजबूती से सप्लायर भाव बढ़ाकर मांग रहे हैं। अब यदि आगे कपड़ों की मांग अच्छी रहती है, तभी इस तरह के कपड़ों का आयात संभव है, अन्यथा कमजोर मांग होने पर कपड़ों का आयात करना जोखिम भरा होने का डर आयातकों को सता रहा है।
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