नई दिल्ली/ राजेश शर्मा
इस माह के आरंभ में भारत और आस्टे्रलिया बीच हुए इकानोमिक को-ऑपरेशन एंड ट्रेड एग्रीमेंट (ईसीटीए) का स्वागत करते हुए अपैरल एक्सपोर्ट प्रोमोशन कौंसिल यानि एइपीसी के चेयरमैन श्री नरेन्द्र गोयनका ने कहा कि इससे भारत से गारमेंट के निर्यात में वृद्धि होगी। इस एग्रीमेंट के बाद भारत से लगभग 96 प्रतिशत वस्तुओं जिनमें रोजगार देने वाल अपैरल सैक्टर भी है, का निर्यात आस्टे्रलिया को बिना किसी ड्यूटी के किया जा सकेगा। अभी आस्टे्रलिया दक्षिणी गोलाद्र्ध में गारमेंट का सबसे बड़ा आयातक देश है, लेकिन इस समय भारत से इनका आयात पर करने पर ड्यूटी लगती है।
उल्लेखनीय है कि इस समय आस्ट्रेलिया आयातकों को भारत से गारमेंट के आयात करने पर 4.8 प्रतिशत की ड्यूटी देनी पड़ती है, जबकि चीन और बांग्लादेश से ड्यूटी मुक्त है। इससे भारतीय निर्यातकों के गारमेंट प्रतिद्वंदी देशों चीन और बांग्लादेश की तुलना में आस्ट्रेलिया में मंहगा पड़ता है। अब भारतीय निर्यातक आस्टे्रलिया में चीन और बांग्लादेश के मुकाबले में टिक पाएंगे और निर्यात बढ़ेगा। इस समय आस्ट्रेलिया अधिकांश गारमेंट का आयात चीन से करता है और आस्ट्रेलिया के कुल गारमेंट आयात में भारत का योगदान केवल 3 प्रतिशत ही है। बरहरहाल, यह संतोष की बात है कि कोविड-19 के बावजूद आस्ट्रेलिया के कुल गारमेंट आयात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 3 प्रतिशत पर ही बनी रही। अब टैरिफ का अंतर समाप्त हो जाने के बाद भारत से गारमेंट के निर्यात में वृद्धि होगी। अनेक देश अब चीन प्लस वन की नीति अपना रहे हैं और हाल ही में आस्टे्रलिया के साथ हुए एग्रीमेंट के बाद भारत से निर्यात में वृद्धि होगी। अब भारतीय निर्यातकों का फोकस क्षेत्र आस्टे्रलिया होगा, क्योंकि जो प्रोडक्ट चीन में बनते हैं, वे भारत में भी बनते हैं।
उल्लेखनीय है कि चीन से आयात निर्भरता कम करने के लिए अनेक देश चाईना प्लस वन की रणनीति अपना रहे हैं। श्री गोयनका कहना है कि भारत से निटेड जर्सी, पुलओवर्स और टी-शट्र्स आदि जिनमें मैनमेड फाईबर का प्रयोग अधिकता से होता है, का निर्यात बढऩे की व्यापक संभावना है। आस्टे्रलिया द्वारा इनका आयात काफी मात्रा में किया जाता है। गत वर्ष आस्टे्रलिया ने भारत से क्रोशिया या निटेड जर्सी, पुलओवर, वैस्टकोट आदि का भारी आयात किया था। इसके बाद दूसरा स्थान कॉटन टी-शर्ट का रहा।
उनका यह भी कहना है कि भारतीय गारमेंट उद्योग को स्प्रिंग और समर सीजन के गारमेंट बनाने में महारथ हासिल है, लेकिन विंटर सीजन के गारमेंट में इतनी निपुणता नहीं है। भारतीय निर्माता विंटर सीजन के प्रोडक्ट बनाने में अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर नहीं करते हैं। उल्लेखनीय है कि दक्षिणी गोलाद्र्ध में होने के कारण आस्टे्रलिया में विंटर और स्प्रिंग सीजन के परिधानों की मांग अधिक होती है।
अब भारतीय गारमेंट निर्माता अपनी विंटर सीजन की क्षमता का भी पूरा कर सकेंगे, क्योंकि जिस समम आस्टे्रलिया में विंटर परिधानों की मांग होती है, तब भारतीय निर्माताओं के लिए यह क्लीन पीरियड यानि खाली समय होता है। श्री गोयनका के अनुसार आस्ट्रेलिया को जीरो ड्यूटी पर निर्यात किए जाने की सुविधा मिल जाने के बाद भारतीय गारमेंट निर्माता स्प्रिंग-समर के उत्पादन के बाद विंटर सीजन के लिए भी उत्पादन कर सकेंगे।
ऐसे में भारतीय गारमेंट निर्माता अब पूरे वर्ष उत्पादन कार्य में लगे रह सकते हैं और जीरो ड्यूटी होने के बाद आगामी तीन वर्षों में भारत से आस्टे्रलिया को गारमेंट के निर्यात में तीन गुना बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि इस एग्रीमेंट के बाद भारत से न केवल कुल निर्यात में वृद्धि होगी अपितु देश के टेक्सटाइल और गारमेंट सेक्टर में निवेश के साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
गारमेंट सेक्टर देश में सर्वाधिक रोजगार देने वाला सेक्टर है और वर्तमान में लगभग 140 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिल रहा है, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं हैं। टेक्सटाइल और गारमेंट के अधिकांश उद्योग एमएसएमइ सैक्टर में हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भारत और यूएई के बीच भी इसी प्रकार का एग्रीमेंट हुआ है और इससे देश से गारमेंट निर्यात में भारी वृद्धि की संभावना है। इस प्रकार आगामी महिनों में देश से टेक्सटाइल और गारमेंट के निर्यात में भारी वृद्धि के अनुमान हैं।
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