रेमंड कॉटन में सुगबुगाहट तो सूटिंग एवं शर्टिंग की मांग स्थिर
मुंबई/ रमाशंकर पाण्डेय
कपड़ा बाजार में ग्राहकी नदारद है। सिर्फ निर्यात मांग से उत्पादकों को थोड़ी राहत मिली है। कॉटन तथा एपेरल के निर्यात में वृद्धि होने के आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि टेक्सटाइल क्षेत्र में बदलाव आ रहा है परंतु इस बार त्योहारों के समय में न तो साउथ की ग्राहकी और न ही उत्तर भारत की कपड़ों की मांग अच्छी रही है। रिटेल ग्राहकी भी कमजोर ही है। रुई और कॉटन यार्न की मजबूती से ग्रे कपड़ों का उत्पादन घटा है, और मांग अच्छी नहीं होने पर भी ग्रे कपड़ों के भाव मजबूत रहे हैं, लेकिन बाजार का रुख कमजोर है क्योंकि ठंडी पडऩे से गर्म कपड़ों की मांग पिछले सीजन की तुलना में अच्छी रही तो मलमास के कारण कपड़ों की मांग घटी है।
देशभर में कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है, साथ ही नये वेरिएंट ओमिक्रॉन से देश तथा विदेशों में हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में कारोबार को लेकर कारोबारियों में अनिश्चितता बढ़ी है। नये आर्डर लेने और देने में व्यापारी कतरा रहे हैं। मिलें उधारी में माल देने से हिचक रही है, जबकि कपड़ों में अधिकांश काम उधारी में ही होता है। पुरानी उधारी अभी तक नहीं लौटी है। जो ऑर्डर पहले से दिए गए हंै, उसकी डिलीवरी टाल रहे हैं। मुंबई में लॉकडाउन नहीं लगा है और संभावना भी कम है, परंतु संक्रमण को रोकने के लिए प्रतिबंधों को अधिक कठोर बनाने से बाजारों में भीड़-भाड़ घटी है, साथ ही शादी समारोहों में भीड़ अधिक नहीं हो, इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
इस लहर की मारक क्षमता पिछली लहर जैसी नहीं है। हां संक्रमण की दर अधिक है। महामारी से निपटने की अब मुस्तैद व्यवस्था भी देश में भरपूर विकसित हो चुकी है, फि र भी भय एवं आशंका के बीच उद्योग धंधों पर इसका विपरीत असर पड़ता दिखाई दे रहा है। पिछले वर्ष कोरोना के कारण पूरी वैवाहिक सीजन के साथ स्कूल यूनिफॉर्म की सीजन खराब हो गई थी। इस वर्ष भी वैवाहिक सीजन शुरू होते ही कोरोना के केस बढऩे शुरू हो गए, इससे शादी-विवाह के सीजन में बिकने वाले फैंसी कपड़ों के साथ उन सभी कपड़ों में कारोबार घट गया है, जिनकी इस सीजन में मांग रहा करती है। कपड़ों के आयोजित किए जाने वाले टे्रंड फेयर भी अब कैंसल हो रहे हैं। 31 जनवरी से बजट सत्र शुरू हो रहा है। 1 फ रवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। जीएसटी लागू होने के बाद अब कपड़ों पर करों के प्रभाव की कोई संभावना नहीं है, लेकिन उद्योग एवं देश की अर्थव्यवस्था की एक मजबूत कड़ी मध्यम वर्गीय लोगों को बजट में कुछ राहत मिलती है कि नहीं इस पर जरूर लोगों की नजर होगी। यह मध्यम वर्ग ही है, जो सबसे अधिक नई चीजों को खरीदने के लिए आगे आता है। इसी वर्ग पर पिछले कोरोना काल के दौरान सबसे अधिक मार भी पड़ी है। कईयों की नौकरी चली गई है और लोगों को मजबूरन अपने खर्चो में कटौती करनी पड़ी है। मध्यम वर्ग की खरीद शक्ति घटने का असर देश की अर्थव्यस्था और कारोबारों पर देखने को मिला है। पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इनमें उत्तरप्रदेश सबसे बड़ा राज्य है। चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के उपयोग के झंडा, बैनर, टोपी, पट्टा इत्यादि भिवंडी और मालेगांव में बनते 80 प्रतिशत रोटो कपड़ा और 20 प्रतिशत चमकीले साटीन से तैयार किए जाते हैं। रोटो ग्रे कपडों की रेंज 8 से 11 रू और साटीन की रेंज 14 से 16 रू मीटर होती है। रोटो का डाइंग प्रोसेस चार्ज प्रति मीटर 3 से 6 रू, जबकि साटीन का 5 से 8 रू मीटर पड़ता है।
यद्यपि सूरत डिजिटल प्रिंट में सबसे आगे है और साडिय़ों पर प्रतीक चिन्ह की प्रिटिंग सूरत में कर उसे देशभर में बेचा जाता है, परंतु सस्ते बैनर इत्यादि के लिए मथुरा, हैदराबाद, बालोतरा जैसे शहर अधिक अनुकूल माने जाते हैं।
कपड़ों में कारोबार का यही अच्छा सीजन है, इसमें बाजारों में हर किस्म के कपड़ों की पुरजोर मांग रहती है।अब 15 जवरी से उत्तरायन के पश्चात वैवाहिक सीजन शुरू हो रही है। जो शादियां पहले से तय है, कैंसल नहीं हुई है, उसके लिए मुंबई और सूरत इत्यादि उत्पादन केंद्रों से कारीगरों का अपने गांव की ओर जाना शुरू हो गया है। इचलकरंजी में ऐसी नौबत नहीं है। मतलब कपड़ों का उत्पादन और घटेगा। आगे चलकर ग्रे कपड़ों का बाजार कुछ सुधर भी सकता है। अहमदाबाद की ओर आधे प्रोसेस हाउसों के बंद होने से ग्रे कपड़ों की मांग नहीं है। प्रोसेस कराकर कपड़ा बेचने वाले व्यापारियों की मांग घटने के कारण ग्रे कपड़ों के साथ फि निश कपड़ों की मांग भी रुक गई है।
सूटिंग एवं शर्टिंग की मांग स्थिर है। देसी एवं आयातित सूटिंग की मांग में एक जैसी स्थिति दिखाई दे रही है। संभवत: आगे चलकर इसमें कुछ सुधार दिखाई दे। ग्राहकी नहीं हैं और भाव स्थिर है। सूटिंग एवं शर्टिंग में लायक्रा, पोलिएस्टर, विस्कोस मिक्स फैब्रिक्स की उपलब्ध बढ़ी हैैै। लीक से हटकर बने कपड़ों की फ ील अच्छी, तो लागत किफ ायती है। 5 रू घटने के बाद फि र से डेनिम की मांग निकली है। यार्न डाइड चेक्स शर्टिंग की पूछताछ अच्छी है। फि निश 58ÓÓपना मिलों का भाव 141रू से घटकर 130 रु हो गया है। सफेद आयातित रेमी शर्टिंग की मांग है, 58ÓÓ पना का भाव 330 रु है। देसी सूटिंग की मांग कम भाव होने के कारण बाजारों में रहा करती थी, जो अभी नहीं है।
सलोना प्लेन सूटिंग का प्रति मीटर भाव 125 रु है। फोर-वे स्टे्रच सूटिंग का प्रति वार भाव 175 रु है। लेडीज लैंगिंग में इस्तेमाल होती वेराइटी लामलाम का प्रति वार भाव 95 रू चल रहा है। भिवंडी में बनती रेमंड कॉटन वेराइटी में सुगबुगाहट है। 48" पना रेमंड ग्रे का भाव 22 रू है। लिनन फैब्रिक्स में भी करेंट है और इसके ग्रे का भाव 135 से 140 रू के बीच चल रहा है।रेयॉन के भाव में थोड़ी गिरावट आई है। ऐसी रिपोर्ट है कि बाजार में हेवी रीडपिक रेयॉन का भरपूर स्टॉक पड़ा होने से अब इसे बाहर निकाला गया है। 14 किलो की क्वालिटी 48ÓÓ पना ऑटोलूम के माल का भाव 34.25 रू और 17 किलो क्वालिटी 63" पना का एयरजेट लूम के माल का भाव 58रू है।
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