नई दिल्ली/ राजेश शर्मा
देश के टेक्सटाइल उद्योग को परेशानी से बचाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से इस पर लगी कुल 11 प्रतिशत की आयात ड्यूटी को समाप्त करने का अनुरोध किया है। विभिन्न औद्योगिक संगठनों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि देश में कॉटन के भाव ऐतिहासिक ऊंचाई छू चुके हैं और विश्व बाजार में भी भाव में बढ़त जारी है जो देश के टेक्सटाइल उद्योग को वैश्विक स्पर्धा से बाहर कर रही है, जबकि हाल में सरकार द्वारा इस उद्योग को दिए गए प्रोत्साहनों से आशा थी कि देश से टेक्सटाइल और गारमेंट के निर्यात में बढ़ोतरी होगी। कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद सरकार द्वारा उद्योग के उठाए गए अनुकूल कदमों और वैश्विक तथा घरेलू मांग में आए सुधार के कारण कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री पटरी पर लौट रहा था, लेकिन दुर्भाग्यवश काटन के भाव में आई बेहताशा बढ़ोतरी ने सब कुछ अनिश्चित कर दिया है। कांफैडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीटी) के चेयरमैन श्री टी राजकुमार ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि टेक्सटाइल उद्योग सरकार द्वारा गत फ रवरी में कॉटन के आयात पर लगाई गई 10 प्रतिशत की ड्यूटी (जो सेस आदि लगाकर 11 प्रतिशत बैठती) को लगातार समाप्त करने की मांग करता आ रहा है, क्योंकि इसके हटाने से किसानों को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि भारत एक्सट्रा लांग स्टेपल कॉटन का आयात करता है और इसका देश में उत्पादन नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि सितम्बर 2020 में कॉटन के भाव 37,000 रुपए प्रति खंडी थे, जो दिसम्बर 2021 में 70,000 रुपए का ऐतिहासिक स्तर छू गए। सदर्न कॉटन मिल्स एसोसिएशन (सिमा) के चेयरमैन श्री रवि सैम के अनुसार गत वर्ष सरकार ने टेक्सटाइल उद्योग उत्थान के लिए कदम उठाए, यहां तक कि टेक्सटाइल सेक्टर पर जीएसटी की बढ़ी दरों पर रोक लगा दी है लेकिन सरकार द्वारा कॉटन के आयात पर ड्यूटी का उद्योग पर विपरीत असर पड़ रहा है क्योंकि विश्व बाजार के साथ घरेलू बाजार में भी कॉटन के भाव में बढ़ोतरी हो रही है। उनका कहना है कि हमेशा न्यूयार्क कॉटन वायदा में भाव भारत की तुलना में अधिक होते हैं लेकिन इस समय स्थिति विपरीत है। न्यूयार्क कॉटन की तुलना में भारत में कॉटन के भाव गत दो महीनों से 10-15 रुपए प्रति किलो ऊंचे चल रहे हैं तथा आने वाले समय में स्थिति और बिगड़ सकती है। श्री सैम का कहना है कि कॉटन के भाव में आ रही तेजी के कारण निर्यातक खरीददारों के साथ अपने फैब्रिक या गारमेंट के निर्यात सौदों को कन्फ र्म नहीं कर पा रहे हैं और इससे भारत के ऑर्डर अन्य देशों को जा रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से भाव वृद्धि को रोकने के लिए हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुए मांग की कि कॉटन पर आयात ड्यूटी को समाप्त किया जाए तथा एमसीएक्स और एनसीडेक्स पर कॉटन-कपास वायदा पर प्रतिबंध लगाया जाए, जैसे कि विगत दिनों सट्टेबाजी रोकने के लिए कुछ कृषि जिंसों पर लगाया गया था।
हालांकि देश में कॉटन का नया सीजन आरंभ हुए तीन महीने हो चुके हैं लेकिन कॉटन के भाव घटने के बजाए बढ़ते ही जा रहे हैं, क्योंंकि जहां एक ओर आवक में बढ़ोतरी नहीं हो रही है और उत्पादन में गिरावट की आशंका व्यक्त की जा रही है, वहीं विश्व बाजार भी तेज हैं और जानकारों का कहना है कि आयात में पड़तल नहीं लग रही है क्योंकि इस पर आयात ड्यूटी भी लगती है। उल्लेखनीय है कि उत्तरी भारत में कॉटन की आवक अक्टूबर से पहले ही आरंभ हो जाती है और उसके बाद मध्य और दक्षिणी भारत में आरंभ होती है। बहरहाल, इस वर्ष आवक होने के बाद भी भाव में कोई गिरावट नहीं आई और लगातार तेजी बनी हुई है। यही नहीं, कपास के भाव तो देश के अनेक उत्पादक केंद्रों पर रिकार्ड स्तर बना गए हैं। व्यापारियों के अनुसार गुजरात में कपास का भाव 10,000 प्रति क्विंटल का स्तर छू गए हैं, जबकि दक्षिणी भारत की मंडियों में 9,300 रुपए से 9,500 रुपए प्रति क्विंटल बने हुए हैं जो सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी से काफी अधिक हैं। सरकार ने कपास के एमएसपी 5,726-6,025 रुपए प्रति क्विंटल तय किए हुए हैं। विगत दिनों गुजरात में कॉटन के भाव 70,000 रुपए प्रति खंडी से ऊपर चले गए थे। देश की अन्य मंडियों में भी कॉटन के भाव काफ ी ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। हालांकि विगत दिनों एमसीएक्स में कॉटन के भाव कुछ गिरावट आई थी, लेकिन उसके बाद फि र तेजी आनी आरंभ हो गई है। बुधवार को एमसीएक्स में 36,670 रुपए प्रति गांठ का अब तक का उच्चतम स्तर छू गई थी। इस तेजी का एक कारण जहां उत्पादन में कमी की आशंका है, वहीं सट्टा प्रवृति की खरीद से भी भाव बढ़ रहे हैं।
सीसीआई भी पीछे नहीं- व्यापारियों के अनुसार तेजी का हवा देने में सरकारी एजेंसी कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया भी पीछे नहीं है और विगत दिनों उसने भी कॉटन के भाव में बढ़ोतरी की है। हालांकि उसके पास अब अधिक स्टॉक नहीं है लेकिन जो स्टाक भी बचा है, उसकी नीलामी में न्यूनतम भाव बढ़ा देती है। इससे भी बाजार में तेजी बन रही है।
कॉटन उद्योग-व्यापार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि देश में आ रही तेजी का कारण इस वर्ष कॉटन का उत्पादन अनुमान से कम होने की आशंका है। हालांकि देश में कॉटन की बुआई गत वर्ष की तुलना में लगभग 7 लाख हैक्टेयर ही कम क्षेत्र पर हुई है लेकिन बेमौसमी बारिश, कीड़े आदि के कारण उत्पाादन में भारी गिरावट आने की आशंका है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कॉटन के उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी के अनुमान जारी करते हुए 361 लाख गांठ के आंकड़े जारी किए हैं जबकि सरकारी अनुमान इससे कहीं अधिक हैं। बहरहाल, व्यापारियों का कहना है कि आवक को देखते हुए कॉटन के उत्पादन में गत वर्ष की तुलना में भारी गिरावट आने की आशंका है।
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