केंद्र करेगा १ जनवरी २०२२ से फैब्रिक पर जीएसटी की नई दरें लागू
भीलवाड़ा/ कमलेश व्यास
जीएसटी कौसिंल के 45वीं बैठक में टेक्सटाइल सेक्टर में जीएसटी स्लेब में बदलाव किया गया है। इस निर्णय से 1 जनवरी 2022 से कपड़ा एवं सिन्थेटिक यार्न में दरे समान होगी। सरकार द्वारा जारी की गई नई दरों में मेनमेड फाइबर 12 प्रतिशत, मानव निर्मित सूत 12 प्रतिशत, सभी प्रकार के कपड़े पर 12 प्रतिशत कपास पर 5 प्रतिशत, सूतीधागों पर 5 प्रतिशत एवं उससे निर्मित फैब्रिक भी 12 प्रतिशत की श्रेणी में रखे गए हैं। वीविंग पर 5 प्रतिशत एवं प्रोसेसिंग को 12 प्रतिशत स्लेब में रखा गया हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा लिये गये निर्णय से कॉटन, वूलन, सिन्थेटिक एवं मिक्स सहित सभी प्रकार के कपड़ों पर जीएसटी 12 प्रतिशत हो जायेगी, जैसा कि उद्यमी मांग कर रहे थे कि जीएसटी कॉटन यार्न के समान 5 प्रतिशत ही रखी जाए, ताकि राहत मिले। इसके विपरीत सरकार ने इन्वर्टेड डयूटी स्ट्रक्चर खत्म करने के लिये हर कपड़े पर जीएसटी 12 प्रतिशत कर दी।
बाजार सूत्रों के अनुसार इसमें फैब्रिक की दरें बढ़ेंगी और निर्यात लागत भी बढ़ेगी, जबकि अभी डयूटी रिफंड करनी पड़ रही थी। जीएसटी एक्सपर्ट का कहना है कि अब रिफंड की समस्या नहीं रहेगी और प्रक्रिया सरल हो जाएगी।
कपड़े की निर्यात लागत बढ़ेगी
फिलहाल सालाना ढ़ाई से तीन हजार करोड़ का डेनिम और तीन हजार करोड़ का सिन्थेटिक यार्न एक्सपोर्ट होता है। डीजल महंगा होने से ट्रांसपोर्ट किराया, शिपिंग भाड़ा व इश्योरेन्स रेट बढऩे की सम्भावना है।
प्रभाव- आरओडीटीआई के तहत डेनिम पर 4.3 प्रतिशत इन्सेटिव है, इसमें लागत 7 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ा दी है, जबकि डेनिम में इतना तो मार्जिन ही नहीं है। ऐसे में एक्पोर्ट लागत बढ़ जाएगी।
इन्वर्टेड ड्यूटी खत्म हो जायेगी
वर्तमान में जीएसटी काउसिंल को प्राथमिक रूप से इन्वर्टेड में रिफंड देने में समस्या आ रही थी, इसलिए सरकार को इन्वर्टेड डयूटी समाप्त करनी थी। कई संगठनों की मांग थी कि जो ड्यूटी कपड़े पर है, वही ड्यूटी यार्न पर की जाये और विशेषकर सिन्थेटिक कपड़े पर लागू हो। पहले कई उद्यमियों के रिफंड अटके रहते थे, जो अब यह समस्या खत्म होगी।
आम आदमी की जेब पर पड़ेगा भार
अभी तक करीब 350 इकाइयों में कपड़ा व यार्न बन रहा है। कॉटन कपड़े पर अभी 5 प्रतिशत जीएसटी है, जो अब 12 प्रतिशत हो जायेगी। सिन्थेटिक व कॉटन कपड़ा महंगा होगा। धोती, कुर्ता, कमीज आदि का कपड़ा भी महंगा होगा। कुल मिलाकर 7-8 रूपये प्रति मीटर तक लागत बढ़ जाएगी।
देश के कई ओद्यौगिक संगठनों ने सभी तरह के कपड़े पर जीएसटी का सरलीकरण करते हुए 5 प्रतिशत करने की केन्द्र सरकार से मांग की थी। स्थानीय मेवाड़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री का तर्क था कि चाहे 7 प्रतिशत मिलने वाला डयूटी रिफंड बंद कर दी जाये। अभी सिन्थेटिक पर 12 प्रतिशत जीएसटी है, किन्तु ड्यूटी रिफंड मिलने से ये 5 प्रतिशत ही लगता था, लेकिन केन्द्र सरकार ने जीएसटी तो 5 प्रतिशत किया नहीं, मगर 7 प्रतिशत डयूटी रिफंड जरूर बंद कर दिया। उद्यमियों का कहना है कि इसका असर कॉटन सिन्थेटिक सहित सभी तरह के कपड़े पर पड़ेगा और उत्पादन लागत बढ़ जायेगी।
एसएमई क्षेत्र को होगा फायदा
इधर कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन कोंसील (टेक्सप्रोसिल) ने कुटीर उद्योगों में तैयार कपड़ों पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरें कम करने का स्वागत किया। संगठन ने कहा कि इससे रेडीमेड वस्त्रों एवं परिधानों की लागत कम होगी और घरेलू उत्पाद प्रतिस्पर्धी होंगे, इससे निर्यात बढ़ेगा।
डी.केे. एजेंसी- स्थानीय वस्त्र मण्डी के शीर्ष कपड़ा एजेंसी के ऑनर श्री उन्नत चौधरी ने बताया कि पहले से ही यार्न बहुत तेज है और इधर 7 प्रतिशत अतिरिक्ति टेक्स लगने से फैब्रिक की लागत बढ़ेगी, हालांकि सरकार से रिफंड का चक्कर समाप्त हो जायेगा। कॉटन यार्न पर 5 प्रतिशत है और फैब्रिक पर 12 प्रतिशत हो गया, यानि सिन्थेटिक एवं कॉटन फैब्रिक के 12 प्रतिशत होने से नि: सन्देह लागत बढ़ेगी और इसका भार उपभोक्ता पर पड़ेगा।
ए.के. स्पिनटेक्स- प्रोसेसगृह के टेक्निकल चीफ श्री अरूण सिंह का कहना है कि कपड़े पर जीएसटी 12 प्रतिशत करने से नि: सन्देह फैब्रिक महंगी होगी और आम आदमी पर इसका भार पड़ेगा। प्रोसेस गृहों पर भी 12 प्रतिशत जीएसटी वसूली होगी। अब आगे हम सभी पार्टियों को कहेंगे कि 1 तारीख से पहले माल उठाएँ ताकि अभी तक जो माल पड़ा है उसका निस्तारण हो क्योंकि तारीख से नई दरों पर कार्य होगा। इससे प्रोसेसगृहों में माल की डिस्पेच में तेजी होगी और दबाव बढ़ेगा।
भीलवाड़ा कपड़ा उद्योग पर असर
लगभग 18 हजार करोड़ टर्नओवर वाली स्थानीय वस्त्र मण्डी में प्रतिमाह 8 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता है और यहाँ पर 70 रूपये से लेकर 200 रूपये तक प्रतिमीटर की फैब्रिक बन रही है। सालाना 96 करोड़ मीटर फैब्रिक का निर्माण हो रहा है, जिसमें 16 करोड़ मीटर कॉटन सेक्टर को अलग करने पर शेष 80 करोड़ मीटर सिन्थेटिक में उत्पादन होता है और इस पर 7 प्रतिशत अतिरिक्त जीएसटी लगने पर 560 करोड़ रूपये का टेक्स बनेगा, जो उपभोक्ता की जेब से निकलेगा।
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