बालोतरा/ लालचन्द पुनीत
औद्योगिक परिदृश्य जो बन रहा है, वह सांकेतिक दृष्टिकोण से लुभावना इसलिये है कि काम को बल मिलने वाले माहौल का सृजन हो रहा है। लम्बे अन्तराल के बाद उद्यमियों को यह लग रहा है कि परिस्थितियाँ परिवर्तित होकर नये सूर्योदय की जिज्ञासा में संजीवन भरने का अवसर अब सन्निकट है। माना कि वर्षा ऋतु का मौसम औद्योगिक व व्यावसायिक दृष्टि से अनुकूलता भरा नहीं रहता, तथापि अन्धेरे के बाद का उजाले का अपना विशेष आकर्षण तो रहता ही है। समग्र देश में जो व्यापारिक गतिविधियाँ कुण्ठित हो चली थी, उससे उनके सम्बद्ध प्रतिष्ठानों की पीड़ा प्रखरता से व्यक्त हो रही थी, उसमें राहत का संचार होने का सरगम स्वत: प्रस्फुटित हो रहा है। अब तक कई प्रतिष्ठानों में तैयार माल से गोदाम भरे पड़े थे। माल को लेने वालों का टोटा था। माल चालानी की दुविधा के साथ भुगतान आने की सम्भावनायें नहीं बन पा रही थी। पुरानी बकाया का सरदर्द भी कम नहीं था। इसके अलावा ग्रे क्लॉथ में आई तेजी ने तो कईयों का गणित ही बिगाड़ के रख दिया।
ग्रे क्लॉथ के लूम तो बंद थे और जो चल रहे थे वे भी आंशिक रूप में घाटे के साथ। फिलहाल लगता है कि सुकून का श्री गणेश हुआ है। पोपलीन के अलावा पेटीकोट, नाइटी, रेयॉन, पोकेटिंग क्लॉथ की चालानी में गति का आभास होने लगा है। माल की चालानी के फलस्वरूप पुरानी बकाया रकम के आने का क्रम बना है। ब्याज की मार से बचने के लिये उत्पादक तैयार माल आज के भावों के मुकाबले कम भावों में चालान करने के समाचार हंै। विकटतम स्थितियों का जायजा ले चुके उद्यमी अब हर कदम बहुत सोच-विचार के साथ बढ़ा रहे हैं। ग्रे क्लॉथ भी तेजी मंदी के चक्कर के कारण रोजमर्रा की जरूरत के अनुसार ही ले रहे हैं, जिससे कार्यरत श्रमिकों को काम मिलने का सिलसिला जारी रहे। स्थानीय तौर पर कुछ उत्पादक आगे अच्छी तेजी के प्रति आशान्वित हैं, वहीं कुछ लम्बे समय तक सुस्ती के स्वर का गुणगान करने में व्यस्त हैं। जिस प्रकार से विस्तार स्वरूप भारी संख्या में नई मशीनें लग रही हैं, उससे तो सहज ही में यही कयास लगता है कि वस्त्र उद्योग की ऊँची छलांगें लगनी प्रारम्भ हो गई है। सामान्य हालातों के सर्वेक्षण से ऐसा लगता है कि नामचीन ब्राण्ड धारक उद्यमी तो हर प्रकार से और सम्पन्नता के सोपानों पर चढ़ते रहेंगे, मगर छोटे उद्यमियों के लिये कोई स्थाई राहत का पैकेज नहीं दिया गया तो उनके पास मजबूरन पलायन करने का ही विकल्प रहेगा। अभी इस उद्योग में मार्जिन इतना कम हो गया है कि जिन प्रतिष्ठानों का आधार सशक्त है, उनको तो अवसर पर अवसर मिलेंगे परन्तु अन्यों की शोचनीय हालत को देखते हुए उनके भविष्य को सँवारने की पहल करनी आवश्यक है। सीईटीपी के ट्रस्टियों के चुनाव का मुद्दा बराबर गर्माया जा रहा है। खड़े होने में उम्मीदवार तो बहुत होंगे, किन्तु जीत का पलड़ा किनके पक्ष में रहता है उस पर सारा दारोमदार है। अभी तो उम्मीदवार आन्तरिक रूप से सम्पर्क साध कर अपना पक्ष प्रबल करने पर उतारू हैं। केन्डीडेट के घोषणा पक्ष भी प्रकाशित नहीं हुए है। सेवा के क्षेत्र में कौन कितनी हिम्मत से आगे आता है वो उम्मीदवारों की घोषणायें ही बतायेगी। इसके प्रबुद्ध मतदाता किसी भुलावे में आने वाले नहीं है। सी.ए.डे. के उपलक्ष्य में स्थानीय प्रबुद्ध चारर्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स ने आत्मीय आयोजन को अंजाम दिया। सामूहिक मिलन के इस अवसर पर कई चर्चाओं को विशेष स्थान मिला। स्मरण रहे इन दिनों नगर में कईयों ने सी.ए. बनने का सौभाग्य प्राप्त किया है। इस प्रकार के आयोजन में उन्हें भी स्थान दिया होता, तो सोने में सुगन्ध सदृश गरिमा प्रखर पर इस प्रकार के आयोजन विशेष महत्व व एकता उजागर करने के प्रतीक बनते हैं। उद्यमियों के साथ आम नागरिकों को इन दिनों आवागमन में अत्यधिक परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। श्रमिकों को माल इधर से उधर ले जाने में लम्बा चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ रहा है। ब्रिज निर्माण का कार्य भविष्य की दृष्टि से सुविधाओं में चार चाँद लगा सकता है, परन्तु वर्तमान में आना जाना कितना विकट होगा, इसकी कल्पना नहीं थी। मात्र समुचित सर्विस लाईन को प्राथमिकता दी जाती तो काफी कुछ सुविधाजनक होता। प्रशासनिक अधिकारियों व परिषद को इस ओर विशेष जागरूकता के साथ कुछ राहत हेतु कदम उठाने चाहिए।
ग्रे क्लॉथ के लूम तो बंद थे और जो चल रहे थे वे भी आंशिक रूप में घाटे के साथ। फिलहाल लगता है कि सुकून का श्री गणेश हुआ है। पोपलीन के अलावा पेटीकोट, नाइटी, रेयॉन, पोकेटिंग क्लॉथ की चालानी में गति का आभास होने लगा है। माल की चालानी के फलस्वरूप पुरानी बकाया रकम के आने का क्रम बना है। ब्याज की मार से बचने के लिये उत्पादक तैयार माल आज के भावों के मुकाबले कम भावों में चालान करने के समाचार है।
विकटतम स्थितियों का जायजा ले चुके उद्यमी अब हर कदम बहुत सोच-विचार के साथ बढ़ा रहे हैं। ग्रे क्लॉथ भी तेजी मंदी के चक्कर के कारण रोजमर्रा की जरूरत के अनुसार ही ले रहे हैं, जिससे कार्यरत श्रमिकों को काम मिलने का सिलसिला जारी रहे। स्थानीय तौर पर कुछ उत्पादक आगे अच्छी तेजी के प्रति आशान्वित हैं, वहीं कुछ लम्बे समय तक सुस्ती के स्वर का गुणगान करने में व्यस्त हैं। जिस प्रकार से विस्तार स्वरूप भारी संख्या में नई मशीनें लग रही हैं, उससे तो सहज ही में यही कयास लगता है कि वस्त्र उद्योग की ऊँची छलांगें लगनी प्रारम्भ हो गई है।
सामान्य हालातों के सर्वेक्षण से ऐसा लगता है कि नामचीन ब्राण्ड धारक उद्यमी तो हर प्रकार से और सम्पन्नता के सोपानों पर चढ़ते रहेंगे, मगर छोटे उद्यमियों के लिये कोई स्थाई राहत का पैकेज नहीं दिया गया तो उनके पास मजबूरन पलायन करने का ही विकल्प रहेगा। अभी इस उद्योग में मार्जिन इतना कम हो गया है कि जिन प्रतिष्ठानों का आधार सशक्त है, उनको तो अवसर पर अवसर मिलेंगे परन्तु अन्यों की शोचनीय हालत को देखते हुए उनके भविष्य को सँवारने की पहल करनी आवश्यक है।
सीईटीपी के ट्रस्टियों के चुनाव का मुद्दा बराबर गर्माया जा रहा है। खड़े होने में उम्मीदवार तो बहुत होंगे, किन्तु जीत का पलड़ा किनके पक्ष में रहता है उस पर सारा दारोमदार है। अभी तो उम्मीदवार आन्तरिक रूप से सम्पर्क साध कर अपना पक्ष प्रबल करने पर उतारू हैं। केन्डीडेट के घोषणा पक्ष भी प्रकाशित नहीं हुए है। सेवा के क्षेत्र में कौन कितनी हिम्मत से आगे आता है वो उम्मीदवारों की घोषणायें ही बतायेगी। इसके प्रबुद्ध मतदाता किसी भुलावे में आने वाले नहीं है।
सी.ए.डे. के उपलक्ष्य में स्थानीय प्रबुद्ध चारर्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स ने आत्मीय आयोजन को अंजाम दिया। सामूहिक मिलन के इस अवसर पर कई चर्चाओं को विशेष स्थान मिला। स्मरण रहे इन दिनों नगर में कईयों ने सी.ए. बनने का सौभाग्य प्राप्त किया है। इस प्रकार के आयोजन में उन्हें भी स्थान दिया होता, तो सोने में सुगन्ध सदृश गरिमा प्रखर पर इस प्रकार के आयोजन विशेष महत्व व एकता उजागर करने के प्रतीक बनते हैं।
उद्यमियों के साथ आम नागरिकों को इन दिनों आवागमन में अत्यधिक परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। श्रमिकों को माल इधर से उधर ले जाने में लम्बा चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ रहा है। ब्रिज निर्माण का कार्य भविष्य की दृष्टि से सुविधाओं में चार चाँद लगा सकता है, परन्तु वर्तमान में आना जाना कितना विकट होगा, इसकी कल्पना नहीं थी। मात्र समुचित सर्विस लाईन को प्राथमिकता दी जाती तो काफी कुछ सुविधाजनक होता। प्रशासनिक अधिकारियों व परिषद को इस ओर विशेष जागरूकता के साथ कुछ राहत हेतु कदम उठाने चाहिए।
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