ग्राहकी का इंतजार : अगस्त तक सुधार की संभावना
नई दिल्ली/ राजेश शर्मा
कोविड-19 की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिए दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों द्वारा जो लॉकडाउन लागू किया, उसने देश के कपड़ा कारोबार की कमर ही तोड़ दी है क्योंकि लॉकडाउन उस समय लागू हुआ, जब बाजार में कारोबार पीक पर होता है। दिल्ली सरकार ने अप्रैल के पहले सप्ताह से ही कोविड-19 की दूसरी लहर को रोकने के लिए कदम उठाने आरंभ कर दिए थे और 19 अप्रैल से तो लॉकडाउन ही लागू कर दिया था। अन्य राज्य सरकारों ने भी इसी तिथि के आसपास लॉकडाउन जैसे उपाय करने आरंभ कर दिए थे। उल्लेखनीय है कि अप्रैल से लेकर जुलाई तक वैवाहिक सीजन जोरों पर होता है और कपड़े के कुल कारोबार में अधिकांश योगदान इस अवधि में हुए कारोबार का ही होता है। बहरहाल, अब दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन हटा लिया है लेकिन कुछ अन्य राज्यों में प्रतिबंध अभी भी जारी हैं, जो कपड़ा बाजार को प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि अब दिल्ली में थोक व खुदरा बाजार खुलने लगे हैं और खुदरा बाजारों में रौनक भी है लेकिन थोक कपड़ा बाजार में अब भी ग्राहकी का इंतजार है। व्यापारियों के अनुसार भले ही थोक बाजार खुल गए हैं, लेकिन कपड़े का कोई खरीददार नहीं आ रहा है। अप्रैल के आरंभ में कुछ ग्राहकी निकली थी, लेकिन आधा अप्रैल और पूरा मई लॉकडाउन में ही बीत गया।
स्टॉक अटका- फरवरी-मार्च में जब यह लगने लगा था कि स्थिति सामान्य हो रही है, तो थोक और खुदरा व्यापारियों ने यह सोचकर खरीद की थी कि जल्दी ही हालात सामान्य हो जाएंगे और कपड़े की मांग अच्छी रहेगी। एक अन्य कारण वैवाहिक तिथियां भी अधिक होना था। बहरहाल, दिल्ली सरकार द्वारा की तीसरे सप्ताह से एक-एक सप्ताह का जो लॉकडाउन आरंभ किया, उससे व्यापारियों का सारा गणित बिगड़ गया और रही सही कसर कोरोना की भयावहता ने पूरी कर दी, क्योंकि दूसरी लहर ज्यादा घातक साबित हुई और देश भर में त्राहि-त्राहि मच गई।
वस्तुत: जनवरी से मार्च तक मिलों ने कॉटन सहित सभी प्रकार के फैब्रिक में जोरदार भाव वृद्धि की थी और अब वह सारा स्टॉक अटक गया है। चौमासा आरंभ हो जाने पर हर वर्ष कपड़ा बाजार में कारोबार थम जाता है और इस वर्ष तो वैसे ही बुरा हाल है। ऐसा नहीं लगता कि तीज-त्यौहार की मांग भी आएगी। हालांकि जुलाई में काफी वैवाहिक तिथियां हैं लेकिन उसकी किसी खास मांग आने की संभावना नहीं है, क्योंकि विवाह समारोह आदि में गेदरिंग सीमित ही करने की अनुमति है। ऐसे में ऐसा नहीं लगता है कि अब सितम्बर से पहले कारोबार में कोई गति आएगी। व्यापारियों के पास ऊंचे भाव का स्टॉक पड़ा हुआ है, जबकि आगामी दिनों में भाव के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। 30 प्रतिशत तक की तेजी दरअसल लॉकडाउन से पहले तक कॉटन के कुछ आइटमों में मिलों और निर्माताओं ने 30 प्रतिशत तक की भाव वृद्धि कर दी थी और व्यापारियों का आशा थी कि बाजार में स्टॉक नहीं होने के कारण मांग आने पर भाव वृद्धि पच जाएगी, लेकिन अब स्थिति विपरीत है।
लगभग एक दशक का उच्चतम स्तर छूने के बाद कॉटन के भाव ठहर गए हैं या नीचे आने लगे हैं, जो इस बात का संकेत दे रहे हैं कि आगामी दिनों में कॉटन यार्न के दाम में कमी आएगी और फैब्रिक की उत्पादन लागत कम कर देगी। ऐसे में पुराना ऊंचे भाव का स्टॉक व्यापारियों के लिए परेशानी पैदा कर सकता है।
सिंथेटिक यार्न
मिलें और निर्माता सिंथेटिक फैब्रिक के दाम पहले ही काफी बढ़ा चुके हैं, जबकि अब कच्चे तेल में हो रही वृद्धि से यार्न महंगा होने की बात कही जा रही है, ऐसे में सिंथेटिक फैब्रिक के भाव में भी अनिश्चितता नजर आ रही है। दूसरी और स्कूल यूनिफॉर्म की मांग इस वर्ष भी निकलती नजर नहीं आ रही है, क्योंकि स्कूल अभी खुलने की कोई संभावना नहीं है। इस बार बाजार में लेडिज सूट आदि की मांग भी नजर नहीं आ रही है, जबकि गत कुछ वर्षों से इस कारोबार को सदाबहार कहा जाने लगा था। जिस समय बाजार में कहीं ग्राहकी नहीं होती थी, उस समय भी लेडिज सूटों की मार्केट में अच्छी ग्राहकी देखने को मिलती थी।
तीसरी लहर
इसी बीच, मीडिया में तीसरी लहर आने की बात की जा रही है। व्यापारियों को अब इसका भय भी सता रहा है। ऐसे में लगता है कि फिलहाल कारोबार में स्थिरता ही रहेगी। वर्तमान स्थिति में मिलें और फैब्रिक निर्माता भी फि लहाल इंतजार करो और देखो की नीति अपनाते नजर आ रहे हैं और ऐसा नहीं लगता कि जल्दी ही कॉफ्रेंस आदि का दौर आरंभ होगा। इधर, बाजार में धन की तंगी बनी हुई है और थोक व्यापारी खुदरा व्यापारियों से भुगतान आने का इंतजार कर रहे हैं।
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