सूटिंग-शर्टिंग के साथ साडिय़ों में सुगबुगाहट बढ़ी
मुंबई/ कपड़ा बाजार में कामकाज पूरी तरह से नहीं सुधरा है। दीपावली की पाँच दिनों की छुट्टियों के बाद खुले कपड़ा बाजार में लाभ पंचमी के दिन मुहूर्त सौदों में जिस तरह की उदासीनता दिखाई दी, कारोबारियों को उसी से अनुमान लग गया है कि बाजार का रूख अभी डगमगा रहा है। खाने-पीने की चीजों की कीमतों में भारी उछाल आने के बाद ग्राहकों की खरीददारी पर इसका विपरीत असर हो सकता है। कपड़ों की मांग पर बढ़ी महंगाई के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन 15 नवम्बर से वैवाहिक सीजन शुरू होने से रिटेल स्तर पर कपड़ों में कारोबार बढ़ जाने से व्यापारियों को आशा है कि थोक कपड़ों में कारोबार आगे बढ़ेगा।
यद्यपि थोक कपड़ा बाजार में ग्राहकी बहुत ही कमजोर है। इस बार सर्दी की सीजन भी देर से शुरू होने की संभावना है। महाराष्ट्र में चुनाव होने से अभी नकदी पर रोकथाम से बाजारों में आर्थिक संकट है, परंतु 23 नवम्बर के बाद आचार संहिता खत्म हो जानेे से यह अवरोध भी दूर हो जाएगा और कपड़ा बाजारों में सीजनल ग्राहकी के साथ पैसे का लेनदेन सुचारू हो जाने से बाजार अच्छी तरह से चलेगा। इस बार वैवाहिक सीजन लंबी अवधि का होने से बाजार में फैंसी कपड़ों सहित विविध वैरायटी में कारोबार अच्छा रहेगा, साथ ही गारमेंट वालों की सेम्पलिंग नवम्बर अंत तक शुरू होने से कारोबार बढऩे की आशा है। जनवरी में पोंगल पर्व होने से साउथ की ग्राहकी अच्छी रहने की पूरी संभावना है। उसके बाद रमजान और ईद की ग्राहकी बाजार में निकलेगी। इस तरह से देखा जाए तो कपड़ा बाजार में कारोबार करने के लिए सुनहरा अवसर है। रिटेल में कारोबार अब पूरी तरह से लय में आना शुरू हो गया है। थोड़ी बहुत कसर थोक बाजार में ग्राहकी चलने की रही है। यद्यपि कारोबार करने का तरीका अब बदल रहा है और मंडियों में आकर खरीदी करने के बदले ऑनलाइन कामकाज अधिक होने लगा है, इसलिए थोक बाजार में देसावरी मंडियों के व्यापारियों का आना जाना कम हो गया तथा बाजार में पहले जैसी भीड़ नहीं दिखाई देती है।
कपड़ों में कारोबार बढऩे की उम्मीद निर्यात से भी है। कपड़ा एवं गारमेंट के निर्यात में स्थितियां थोड़ी सुधरी है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच पिछले कुछ महीनों में गारमेंट का निर्यात बढ़ा है। मीडिल ईस्ट की ओर भी कामकाज सुधर रहा है। यूरोप के कपड़ा आयातकों से कपड़ों में कारोबार बढऩे की आशा है, क्योंकि इन बाजारों से कपड़ों की मांग अब बढऩे लगी है, जो अभी तक मंद पड़ी थी। डॉलर बढऩे से भारतीय उत्पाद सस्ते पड़ रहे हैं। वैश्विक बाजारों में भारत को अब एक पसंदीदा सोर्सिंग डेस्टिनेशन के रूप माना जाने लगा है। यद्यपि गारमेंट का निर्यात मुख्यतया अमेरिका, यूके, जर्मनी, स्पेन और नीदरलैंड जैसे देशों में किया जाता है। जानकारों का कहना है कि देश में कपड़ों की उत्पादन क्षमता अधिक है, तथापि पूरी क्षमता के साथ उत्पादन नहीं हो रहा है, क्योंकि स्थानीय स्तर पर कपड़ों की मांग अब बढऩी शुरू हुई है। निर्यात मांग में जोर नहीं है। यदि कपड़ा और गारमेंट का निर्यात बड़े पैमाने पर होने लग जाए तो कपड़ों के कारोबार में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। बांग्लादेश में मचे उथल-पुथल का कुछ लाभ निर्यात में दिखाई दे रहा है, लेकिन एक बार वैश्विक भू-राजकीय संकट खत्म हो जाए और अधिक से अधिक देशों के साथ मुक्त व्यापार करार हो जाने के बाद देश से कपड़ा एवं गारमेंट का निर्यात कारोबार में भारी उछाल आने की संभावना है।
मुंबई के थोक बाजार में धंधा घट रहा है। व्यापारियों ने लोअर परेल, दादर, अंधेरी, भिवंडी सहित अन्य स्थानों की ओर कपड़ों में कारोबार करना शुरू कर दिया है। एक समय जब मुंबई में कपड़ा मिलों के बंद होने के बाद उपनगरों की ओर बड़ी तेजी के साथ वीविंग इकाइयों और प्रोसेस हाउसों के कार्यरत हो जाने से कपड़ों के उत्पादन एवं बिक्री पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। अभी वीविंग इकाइयों में उत्पादन आधी क्षमता पर है, तो प्रोसेस इकाइयां करीब 75 प्रतिशत की क्षमता पर चल रही है। अच्छे प्रोसेस हाउस डिजिटल प्रिंट और वैल्यू एडिशन की ओर मुड़ गए है, इसलिए ब्लीचिंग एवं डाइंग कार्य करने वाले प्रोसेस हाउस कम हो गए है।
पहले साउथ का कॉटन ग्रे कपड़ा मुंबई से ही अहमदाबाद एवं सूरत प्रोसेस के लिए जाता था। अब अहमदाबाद एवं सूरत के प्रोसेसर सीधे साउथ से कॉटन ग्रे कपड़ों की खरीदी करने लगे हैं। इससे मुंबई के थोक कपड़ा व्यापारियों का धंधा घट गया है। डिजिटल प्रिंट के साथ फैंसी कपड़ों में कारोबार होने की उम्मीद की जा रही है। ब्लाउज मटीरियल की पूछताछ बढऩी शुरू हो गई है। ब्लाउज में फैंसी का चलन घटा है, बदले में डिजिटल प्रिंट एवं मूल्यवर्धित वैरायटी में कामकाज हो रहा है। मिल वैरायटी में एकमात्र अरविंद मिल की टू बाई टू रूबिया चकोरी बाजार में आती है। सूटिंग-शर्टिंग के साथ साडिय़ों में सुगबुगाहट बढऩे लगी है।