खुले बाजार में रुई का अच्छा मोल स्पिनिंग मिलें और निर्यातक रहे लेवाल
By: Textile World |
Date: 2021-02-09 |
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मुंबई/ रमाशंकर पाण्डेय
बाजार में रुई की मांग बढ़ रही है, तो कपास की आवक में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। 2020-21 सीजन की शुरूआत 125 लाख गांठ खुलता स्टॉक से हुई थी। जून 20 बाद जैसे ही अनलॉक आगे बढ़ा,उसके बाद टेक्सटाइल उद्योग पूरी क्षमता के साथ चलने लगे। इस वर्ष रुई की स्थानीय मांग पुन: लॉकडाउन के पूर्व स्तर पर पहुंचने की संभावना व्यक्त की गई है। अनुमान है कि 2020-21 में रुई की खपत पिछले वर्ष की तुलना में 13 फीसदी बढ़ सकता है। न केवल देश में बल्कि चीन में भी रुई की खपत बढऩे का अनुमान लगाया गया है। कपास उत्पादन का आधे से अधिक स्टॉक बाजार में आ चुका है और जो अभी आना शेष है, उस पर किसानों की मजबूत पकड़ है।
एक ओर देश में रुई की मंाग लगातार बनी हुई है, तो दूसरी ओर निर्यात में भी कारोबार अच्छे होने के संकेत मिल रहे हैं। इस वर्ष 55 से 60 लाख गांठ निर्यात हो सकता है। मिली जानकारी के अनुसार इस दौरान भारत से रूई का आयात करने में बांग्लादेश एक बड़े आयातक के रूप में उभरा है। अब तक इसे 14 लाख गांठ रुई का निर्यात किया जा चुका है। सीसीआई ने निर्यात के लिए जो टेंडर निकाला है, उसमें चीन एवं वियतनाम की अच्छी खासी रुचि दिखाई दी है। चीन रुई और कॉटन यार्न का बफ र स्टॉक करने में जुट गया है। इसी कड़ी में चीन भारत से 25 से 30 लाख गांठ रुई खरीद सकता है, तो वियतनाम 4से 5 लाख गांठ और बांग्लादेश 30 से 35 लाख गांठ खरीद सकता है।
मार्च 20 के बाद विश्वव्यापी लॉकडाउन के कारण बंद हुए कामकाज का असर कॉटन टेक्सटाइल क्षेत्र पर देखा गया है। मांग घटने से देश में रुई की मांग 20 प्रतिशत घटी थी, इसके बावजूद भारत 50 लाख गांठ रुई का निर्यात करने में सफ ल रहा है। मंदी से भाव घटे और सीसीआई को पिछली सीजन में एमएसपी के भाव पर 115 लाख गांठ रुई की खरीदी करनी पड़ी थी। आज ये स्थितियां बिल्कुल बदल चुकी है। खुले बाजार में रुई का भाव अच्छा मिल रहा है, स्पिनिंग मिलें और निर्यातकों की बाजार में लेवाली बनी हुई है, इससे सीसीआई को कम कपास मिल रहा है। महाराष्ट्र की अधिकांश मंडियों में दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में रुई के भाव प्रति क्विंटल 5400 से 5500 रू थे।
वैश्विक रुई उत्पादन में 130 से 135 लाख हेक्टेयर्स क्षेत्रफल के साथ भारत का योगदान 30 प्रतिशत बताया जाता है, लेकिन उत्पादकता के मामले में भारत पीछे है। यहां प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 450 किलो की है, जबकि ब्राजील में यह 1200 किलो है। भारतीय किसान संगठनों को ब्राजील के किसान संगठनों के साथ मिलकर उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, ऐसा कहना है कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रमुख श्री अतुल गणात्रा का। उन्होंने कॉटन ब्राजील आउटलुक तथा कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री द्वारा हाल ही में उद्घोषित वैश्विक रुई संबंधी वेबिनार में भारतीय रुई के परिदृश्य पर बोलते हुए यह बात कही। इसकी उपज में 20 से 30 प्रतिशत सुधार की संभावना है।