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By: Textile World | Date: 2021-01-22 |
मुंबई/ रमाशंकर पाण्डेय
कपड़ा बाजार में ग्राहकी धीमी है। सामने अच्छी ग्राहकी की संभावना से फिनिश एवं ग्रे कपड़ों की मांग में सुधार की बढ़ती उम्मीदों पर कॉटन यार्न की तेजी ने पानी फेर दिया है। सूती ग्रे कपड़ों के भाव ऐसे स्तर पर पहुंच गए हैं कि बिकवाल एवं लेवाल दोनों के पसीने छूट रहे हैं, उद्योग की मुश्किलें इसने बढ़ा दी है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे एक सुनिश्चित कार्टेल काम कर रहा है, जो अवसर का लाभ उठाने की ताक में है। कारण कि अभी कपड़ों का उत्पादन अधिक नहीं है, बाजार में पुराना स्टॉक नहीं है, पाइपलाइन खाली है, 21 अप्रैल से वैवाहिक सीजन शुरू हो रहा है, जिसमें मांग बढऩी तय माना जा रहा है, थोड़ी शुरूआत भी हुई है, कुछ वेराइटी ऑन डिमांड है।
कपड़ों में इस तरह की अचानक आई तेजी से लाभ भी हुए हैं। स्टॉकिस्टों एवं व्यापारियों के पास पुराना माल गायब हो गया है। पुरानी उधारी लौटने से जहां एक ओर आर्थिक संकट से जूझ रहे व्यापारियों को भारी राहत मिली है, वहीं बाजार में हलचल बढऩे की पूरी उम्मीद है। बाजार में अब उधारी के धंधे में भारी कमी भी देखने को मिली है। लोकल टे्रन चलाने को रेलवे तैयार बैठी है, सिर्फ राज्य सरकार की हरी झंडी मिलने की जरूरत है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में देशभर में शुरू हुए टीकाकरण अभियान से देश की अर्थव्यस्था जल्द पटरी पर लौटने की उम्मीद बढ़ रही है। देश तथा विदेशों में कपड़ों की मांग में सुुधार होने की भी जानकारी मिल रही है।
आम बजट को लेकर बाजार में कोई हलचल नहीं है। यह 1 फरवरी को पेश होने जा रहा है। निर्यात एवं भारतीय बाजारों की मांग पर पैनी नजर रखती एजेंसियों की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय होम टेक्सटाइल के निर्यातकों को अच्छे कारोबार की उम्मीद है। होम टेक्सटाइल की मांग में अच्छा सुधार हुआ है। समग्र टेक्सटाइल उद्योग की मांग में वर्ष में 35 से 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, पर होम टेक्सटाइल में गिरावट सिर्फ 10 एसे 12 प्रतिशत तक सीमित रही है। भारतीय होम टेक्सटाइल क्षेत्र की 60 से 70 प्रतिशत आवक निर्यात से होती है। इसके सबसे बड़े बाजारों में अमेरिका एवं यूरोपियन यूनियन है, जहां कुल निर्यात का 80 प्रतिशत माल निर्यात किया जाता है।
कपड़ा उद्योग के कच्चे माल में कृत्रिम अभाव की स्थिति का फ ायदा उठाने का यह खेल कुछ दिनों से चल रहा है। बाजार के जानकार इसे कार्टेल की एक सोची समझी चाल बता रहे हैं, क्योंकि कपड़ा उद्योग अब मंदी से बाहर निकल रहा है। आगे अच्छी ग्राहकी का सीजन है। ऐसे में रुई, कॉटन यार्न, विस्कोस यार्न, पोलिएस्टर यार्न, रेयॉन, लायक्रा, कोयला, डाईज और केमिकल इत्यादि के भाव में भारी भरकम तेजी बाजार के मार्ग में अवरोधक बनेगी। अभी यार्न से लेकर वीविंग एवं प्रोसेसिंग तक भाव वृद्धि को लेकर हाकाकार मचा हुआ है। इसका असर कारोबार और उससे होने वाले मुनाफे पर होगा। छोटे एवं मध्यम दर्जे पर इस भाव वृद्धि का प्रतिकूल असर होने की संभावना है। अभी कामकाज में सावधानी बरती जा रही है। हाजिर बाजार में माल का अभाव होने से पुराने भुगतान में सुधार हो रहा है। उधारी में माल कम बिक रहा है। कपड़ा पूरी तरह से नकद में बिक रहा है, ऐसा नहीं है। कुछ को उधारी में बेचा जा रहा है, जिनका भुगतान करने का टे्रक रिकॉर्ड अच्छा है। सूटिंग और फैंसी शर्टिंग के भाव में कमोबेश 10 से 15 रू की वृद्धि के बाद बाजार में इनकी मांग बनी हुई है। यार्न डाईड शर्टिंग की मांग कुछ कम है और मिल एवं युनिटों के माल के बीच भाव में अंतर कम हो गया है। रेयॉन में अच्छी डिमांड है। डेनिम की अटकी मांग फिर से खुल गई है। निटेड डेनिम में कारोबार होने लगा है। कपड़ों का आयात घटा है। स्थानीय उत्पादों की बिक्री सुधरी है। कपड़ा उद्योग में रिकवरी को लेकर एक अच्छी खबर रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने दी है।
कपड़ा उद्योग से जुड़ी कंपनियों के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में मांग में धीमा सुधार होगा, ऐसी अपेक्षा रेटिंग एजेंसी ने व्यक्त की है। क्रिसिल के अनुसार कोविड का असर घटेगा और लोगों के खर्च में फिर से वृद्धि होगी। हाल की त्यौहारी सीजन में इस तरह की स्थितियां बाजार में देखने को मिली हैं। कपड़ा उद्योग की आवक में 2020-21 में भारी गिरावट आने के बाद 2021-22 में आवक 40 से 45 प्रतिशत तक बढऩे का अनुमान है। कॉटन यार्न, रेडीमेड गार्मेट, पोलिएस्टर यार्न और होम टेक्सटाइल में स्थानीय तथा निर्यात मांग दोनों के बढऩे के आसार से कारोबार में सुधार होगा। वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद सप्लायर के रूप में भारत को पसंद किया जा रहा है, इससे कपड़ा उद्योग की कंपनियां चीन के हिस्से पर कब्जा जमाने में समर्थ होगी। 2020-21 में टेक्सटाइल कंपनियों की परिचालन मार्जिन में बड़ी वृद्धि होने का अनुमान है। उसके बाद 2021-22 में स्तर कोरोना महामारी से पहले की स्थिति में होगा। क्षमता बढ़ेगी, कच्चे माल के भाव नीचे होंगे, इनका लाभ कंपनियों को मिलेगा। चालू वर्ष में कम आवक के कारण ऋण कम मिलेगा, लेकिन अगले वर्ष क्षमता में वृद्धि होगी, आवक भी बढ़ेगी और आगे चलकर कपड़ा बनाती कंपनियों का मुनाफा सुधारेगा। क्रिसिल की ऐसी रिपोर्ट मंदी में पसरे कपड़ा उद्योग को बाहर निकलने की आशा जगाती है।