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By: Textile World | Date: 2020-09-23 |
विश्व भर का टेक्सटाइल, गारमेंट उद्योग परेशान
नई दिल्ली/ राजेश शर्मा
विश्व भर मे फैल चुके कोविड-19 ने प्रत्येक देश के उद्योग व्यापार को हिलाकर रख दिया है लेकिन टेक्सटाइल व गारमेंट उद्योग और निर्यातक इससे कुछ अधिक ही संकट मे आ गए हैं। सूत्रों के अनुसार कोविड के कारण अनेक देशों द्वारा लॉकडाउन लागू करने से लगभग पूरे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, लेकिन टेक्सटाइल व गारमेंट उत्पादक तथा निर्यातक इससे कुछ अधिक ही त्रस्त हैं। चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भारत, इंडोनेशिया, हांगकांग, कम्बोडिया, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, यूरोपीय समुदाय आदि विश्व में टेक्सटाइल तथा गारमेंट के प्रमुख उत्पादक व निर्यातक देश हैं। अगर कोई अन्य संकट आता तो उसमें आमतौर पर मांग प्रभावित होती थी लेकिन कोविड के कारण मांग और सप्लाई दोनों ही प्रभावित हुए हैं क्योंकि इसे फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन का सहारा लिया गया, इससे उत्पादन और मांग दोनों ही प्रभावित हुए। कोविड के दौर में अमेरिका और यूरोप में कुछ प्रमुख रिटेलर दिवालिया तक हो गए। कोविड-19 की शुरुआत चीन से हुई थी लेकिन वहां पर इस पर एक सीमा तक काबू पाया जा चुका है, जबकि अन्य देशों में इसका प्रकोप अब भी जारी है।
हालांकि अनेक देशों ने लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से हटाना आरंभ दिया है और अनलॉकिंग प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है, लेकिन अर्थव्यवस्था में गति आने में भी समय लगेगा। चीन में टेक्सटाइल उद्योग की गतिविधियों में सुधार होना आरंभ हो गया है और वहां से टेक्सटाइल और गारमेंट के निर्यात में वृद्धि होने लगी है।
वियतनाम, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत आदि में भी कारोबार में सुधार हो रहा है, लेकिन स्थिति सामान्य होने में अभी समय लगेगा। आर्थिक गतिविधियों में सुधार के साथ ही आयातक देशों से भी गारमेंट आदि की मांग में भी अब वृद्धि होने लगी है। सूत्रों के अनुसार इंडोनेशिया का गारमेंट उद्योग अभी भी संकट के दौर से गुजर रहा है, जबकि वहां की अर्थव्यवस्था में इस उद्योग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 2019 में इंडोनेशिया के निर्यात में गारमेंट सैक्टर का 11 प्रतिशत योगदान था और लगभग 52 लाख लोग इस सैक्टर से रोजगार प्राप्त कर रहे थे। इनमें अधिकांश कम वेतन वाले और महिलाएं थी किन्तु कोविड के कारण इस वर्ष मई में इंडोनेशिया के टेक्सटाइल और गारमेंट निर्यात में गत वर्ष की तुलना में 52 प्रतिशत की जोरदार गिरावट दर्ज की गई। इससे पूर्व मार्च में निर्यात में 14.6 प्रतिशत और अप्रैल में लगभग 39 प्रतिशत की कमी आ चुकी थी। अमेरिका इंडोनेशिया के गारमेंट का सबसे बड़ा बाजार है और वहां के लिए निर्यात में लगभग 51 प्रतिशत की कमी आई। कुल निर्यात में से लगभग 60 प्रतिशत गारमेंट का निर्यात केवल अमेरिका को ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त इंडोनेशिया में घरेलू बिक्री भी लगभग 74 प्रतिशत गिर गई।
घरेलू और निर्यात मांग में सिकुडऩ से वहां की युनिटों को मजबूरन उत्पादन बंद करना पड़ा और लाखों लोग बेरोजगार हो गए। जानकारों का मानना है कि संभव है कि अनलॉकिग प्रक्रिया आरंभ होने पर घरेलू मांग में कुछ सुधार हो जाए, लेकिन निर्यात में जल्दी वृद्धि होने की संभावना नजर नहीं आ रही हैं, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी मंदे के दौर से ही गुजर रही है। इंडोनेशिया में सप्लाई चैन भी नहीं बन पा रही हैं, क्योंकि वहां पर अधिकांश युनिट बंद हैं और अनलॉकिंग में उत्पादन आरंभ करने के लिए सरकार ने सोशल डिस्टैंसिंग के लिए कड़े बनाए हुए हैं व उन्हें सख्ती से लागू किया हुआ है। इससे वहां पर बेरोजगारी भी बढ़ गई है क्योंकि युनिटों में एक सीमित संख्या से अधिक कारीगर काम नहीं कर पा रहे हैं, और युनिट छोटी होने के कारण स्थान भी कम हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार ने पीपीई किट के उत्पादन करने में नियमों कुछ ढील दी है, लेकिन उसके लिए टेक्नोलोजी, कच्चे माल आदि की कमी की समस्या बनी हुई है।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप के कारण पीपीई किट्स की मांग में वृद्धि हो रही है और अनेक गारमेंट निर्माताओं ने इनका उत्पादन आरंभ कर दिया है। जानकारों का कहना है कि वास्तव में इंडोनेशिया के गारमेंट उद्योग के सामने कठिनाई का दौर 2019 मे ही आरंभ हो गया था, जब वहां से गारमेंट निर्यात में 2018 की तुलना में 4 प्रतिशत की कमी आई थी। हालांकि यह गिरावट मामूली थी लेकिन इसका कारण वहां पर कच्चे माल की कमी होना था, जो सरकारी नीतियों के कारण प्रभवित हो रहा है। इंडोनेशिया का गारमेंट उद्योग कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भर है और कुल लागत में 18 से 30 प्रतिशत लागत केवल आयातित सामान की ही होती है। इसके अलावा इंडोनेशिया की सरकार ने कच्चे माल के लिए आयात के नियम काफी कठोर करने के साथ ही टैरिफ आदि की दरें भी अधिक की हुई हैंैं, इससे वहां पर न केवल कच्चे माल का आयात महंगा पड़ता है अपितु उसे आयात करने में भी देरी भी होती है और इस प्रकार उत्पादन प्रक्रिया में देरी होने के साथ ही लागत भी बढ़ जाती है। उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया की भांति बांग्लादेश और वियतनाम भी कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भर हैं लेकिन वहां की सरकारी नीतियों से कारोबार में बढ़ोतरी हो रही है।