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By: Textile World | Date: 2020-07-27 |
मुम्बई/ कोरोना मरीजों के बढ़ते केसों से मार्केट में कामकाज करने में भारी दिक्कतें आ रही हैं। लॉकडाउन के कारण मुंबई के प्रमुख कपड़ा बाजार अभी तक बंद थे। लॉकडाउन में थोड़ी ढील देने के बाद कुछ स्थानों पर रिटेलर्स ने अपनी दुकान खोली और कारोबार को फिर से जमाने की कोशिश की, परंतु अचानक कोरोना के केस फिर बढ़ने लगे, इससे रिटेलर्स के प्रयासों पर पानी फिर गया है। अब एम जे मार्केट, मंगलदास मार्केट, स्वदेशी मार्केट पूरी सुरक्षा और अन्य उपायों को तरजीह देकर सोमवार 13 जुलाई से खोल दिए गए हैं। एम जे मार्केट की आधी दुकानें खुल रही है। कुल आठ बाजार अनलॉक चरण शुरू होने के बाद भी नहीं खुल सके थे।
कहीं-कहीं आमने सामने की दुकानों के बीच पांच फुट का भी गेप नहीं है। प्रशासन संभवतः यह सोचकर मार्केट खोलने की अनुमति नहीं दे रहा था कि अगर मार्केट खुला तो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के साथ अन्य नियमों का पालन कैसे संभव होगा। अब इसका हल व्यापारिक संगठनों ने प्रशासन के साथ मिलकर निकाल लिया है। रिटेल मार्केट में एक तिहाई दुकानें रोजाना खुलेगी स्टाफ और ग्राहकों का तापमान चेक होगा और मार्केट में कम गेट खोले जाने हैं। व्यापरियों का कहना है कि कारोबारी अपनी चार महीने से बंद दुकान तो संभालेंगे। अगर अभी नहीं खुलता तो नुकसान अधिक था। यह कपड़ा व्यापारियों की कसौटी है, अन्यथा सूरत जैसी स्थितियां लौट सकती है। बल्कि उपनगरों में भी कोरोना के केस बढ़ने से चिंता बढ़ी है। बाजार खुलते ही पहले साफ-सफ स्मरण रहे कि सूरत के कपड़ा ई और सेनिटाइजेशन तथा अन्य बाजार और हीरा बाजार को फिर से बंद करने पड़े हैं भिवंडी इचलकरंजी जैसे बड़े और टेक्सटाइल केंद्र भी नियमों का सही ढंग से पालन करने में हुई चूक के कारण फिर से बंद पड़े हैं। मुंबई करने कागजी कार्यवाही पर जोर दिया गया था। यहां बाजार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुल रहे हैं मंगलदास जैसे रिटेल मार्केट में ग्राहक बहत कम आ रहे हैं सिर्फ नजदीक क्षेत्रों के के गारमेण्ट कारखाने ग्राहक ही आ रहे हैं, इतना ही नहीं, अभी बंद हैं। मॉनसून सीजन चालू है, कारोबार में अभी शिथिलता रहेगी। एक तो जो स्टाफ दूरदराज के क्षेत्रों में रहता है, उसके बाजार पहुंचने में अभी बहुत परेशानी होगी, क्योंकि लोकल ट्रेन को आम जनों के लिए नहीं खोला बड़ी संख्या में कारोबार भी परिवहन एवं अन्य कारणों से दुकान नहीं पहुंचे हैं। कारोबारियों को धीरे-धीरे कारोबार बेहतर होने की ठम्मीद है। मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन भी कारोबारियों का सिरदर्द बना है अब लोकल गया है। लोकल ट्रेन में अभी सिर्फ ट्रेन में यात्रा करने की इजाजत देनी सरकारी एवं अति आवश्यक सेवा से जुड़े लोगों को ही आने एवं जाने की छूट दी गई है। ऊपर से न सिर्फ मुंबई चाहिए भारत मर्चेंट चैम्बर के ट्रस्टी राजीव सिंगल का कहना है कि भीड़ बढ़ने का डर हो तो सरकार इन दो वर्गों के लिए एक टाइम विशेष तय कर दे। अब गारमेण्ट इकाईयों को खोलने के प्रयास तेज किए गए हैं, मुंबई की गारमेण्ट इकाईयां बंद हैं, जबकि मुंबई से बाहर की इकाईयां खोल दी गई है और इन इकाईयों में काम हो रहा है। परंतु कारीगरों की कमी के साथ ही यहां स्वदेशी एवं निर्यात मांग को टोटा है, हालांकि मॉनसून सीजन शुरू होने से कपड़ों में कारोबार नहीं हो रहा है। गारमेण्ट इकाईयों की कपड़ों की मांग नहीं है, कारण कि न तो देश में और नहीं गारमेण्ट के प्रमुख निर्यात बाजार यूएसए और यूरोप की कोई मांग है। कोरोना के चलते सर्वत्र मांग पर विपरीत असर देखा जा रहा है और इसके चलते अर्थव्यवस्था को तगड़ी मार पड़ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के चरमराने का असर भारत पर भी दिखाई दे रहा है। भिवंडी में करीब 7 लाख पावरलूम हैं। यहां कोरोना के केस बढ़ने और एक अग्रणी वीवर की कोरोना के कारण मौत होने के बाद भिवंडी फिर बंद कैसे हो गया है। इचलकरंजी में 30 से 40 प्रतिशत ही वीविंग चालू हैं। यहां एयरजेट लूम का प्रति पीक जॉब की दर सात से आठ पैसा है और रेपियर लूम की दर 12 से 13 पैसा है। प्रोग्राम के अभाव से बंदी की तलवार लटकी है। डोंबिवली में करीब 100 प्रोसेस हाउसों में से 30 से 40 प्रोसेस हाउसों में आशिक काम चल रहा था। ये प्रोसेस हाउस भी फिर से बंद हो गए हैं। इसी तरह की स्थिति सूरत एवं अहमदाबाद जैसे केंद्रो की बताई जा रही है। अहमदाबाद में सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत वीविंग चालू हैं।
जब देश में कोरोना का फैलाव शुरू हुआ तब एन-95 मास्क की भारी मांग निकली,क्योंकि इससे सुरक्षा संभव थी। सरकार के प्रोत्साहन के बाद उत्पादक बड़े पैमाने पर मास्क बनाने लगे, तथापि मांग इतनी अधिक कि उस वक्त इसकी कालाबाजारी शुरू हुई। एक समय 250 से 300 रु तक ये मास्क बिके थे। आज स्थिति बिल्कुल उल्टी है। एन-95 मास्क की बिक्री अब खुले में बड़े पैमाने पर हो रही है। इनका उत्पादन भी उतनी ही तेजी से बढ़ा। राजकोट में पांच से छह उत्पादक रोज लाखों की संख्या में मास्क बना रहे थे, भिवंडी में मास्क बनाने की कई इकाईयों में कॉटन के अच्छे मास्क बने, लेकिन आज इनकी खपत इतनी घट गई है कि उत्पादक परेशान हैं।